'अधिकारों की हुंकार': राजस्व कर्मचारियों का संघर्ष और सिस्टम की बेरुखी

गोविन्दगढ़ के राजस्व कर्मचारियों का आधे दिन का कार्य बहिष्कार! जानिए क्या हैं उनकी मांगें, और क्यों वे काली पट्टी बांधकर विरोध करने को मजबूर हैं। एक जमीनी हकीकत की रिपोर्ट।

'अधिकारों की हुंकार': राजस्व कर्मचारियों का संघर्ष और सिस्टम की बेरुखी

'अधिकारों की हुंकार': राजस्व कर्मचारियों का संघर्ष और सिस्टम की बेरुखी

गोविन्दगढ़, राजस्थान। धूल भरी सड़कें, तपती धूप, और दूर तक फैले खेत… ये तस्वीर है गोविन्दगढ़ की, एक छोटे से कस्बे की, जहाँ आज एक अलग तरह की हलचल है। राजस्व विभाग के कर्मचारी आज काम पर नहीं आए। दफ्तरों में कुर्सियां खाली पड़ी हैं, फाइलों पर धूल जम रही है, और लोगों के काम अटके हुए हैं। वजह? कर्मचारियों का आधे दिन का कार्य बहिष्कार। ये सिर्फ एक हड़ताल नहीं है, ये एक चीख है, एक गुहार है उस सिस्टम से जो शायद उनकी आवाज़ सुनने को तैयार नहीं है।

 

न्याय की आस में: क्यों सड़कों पर उतरे कर्मचारी? ⚖️

तहसीलदार पदोन्नति का कोटा, वेतन भत्तों में असमानता, और कार्यालयों में संसाधनों की कमी… ये वो मुद्दे हैं जिन्होंने इन कर्मचारियों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। सालों से ये कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन मिला है, ठोस कार्रवाई नहीं।

 

  • तहसीलदार पदोन्नति कोटा: कर्मचारियों का कहना है कि तहसीलदार के पदों पर मंत्रालयिक संवर्ग का कोटा कम कर दिया गया है, जिससे उनके करियर की तरक्की के रास्ते बंद हो गए हैं।

 

  • वेतन भत्तों में असमानता: प्रशासनिक कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों को बेहतर वेतन भत्ते मिलते हैं, जबकि राजस्व विभाग के कर्मचारियों को कम। ये असमानता उन्हें खलती है।
     
  • संसाधनों की कमी: कई कार्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जिससे कर्मचारियों को काम करने में परेशानी होती है।

 

ब्लॉक अध्यक्ष नटवर सिंह कहते हैं, 🎨 "हम सालों से अपनी मांगों को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है। क्या हम इंसान नहीं हैं? क्या हमें सम्मान से जीने का हक नहीं है?"

 

काली पट्टी का संदेश: एक मौन विरोध 🖤

22 जनवरी से, ये कर्मचारी काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। ये सिर्फ एक सांकेतिक विरोध नहीं है, ये एक संदेश है – एक संदेश उस सिस्टम को जो शायद उनकी पीड़ा को समझने में नाकाम रहा है। काली पट्टी बांधकर ये कर्मचारी ये जताना चाहते हैं कि वे चुप नहीं रहेंगे, वे अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।

 

विरोध की रणनीति: आगे की राह 🛣️

अगर सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो कर्मचारी संगठन ने आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी दी है। प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर आंदोलन के अगले चरण की घोषणा की जाएगी। ये लड़ाई लंबी चल सकती है, लेकिन इन कर्मचारियों का हौसला बुलंद है।

 

  • 22-24 जनवरी: काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन।
     
  • प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक: आंदोलन की अगली रणनीति पर विचार।

 

  • अनिश्चितकालीन हड़ताल: यदि सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती है।

 

एक आम आदमी की कहानी: इस हड़ताल का असर 🧑‍🌾

ये सिर्फ कर्मचारियों की लड़ाई नहीं है, ये आम आदमी की भी लड़ाई है। जब कर्मचारी हड़ताल पर होते हैं, तो लोगों के काम अटक जाते हैं। जमीन के कागजात नहीं बनते, नामांतरण नहीं होता, और किसानों को अपनी जमीन से जुड़े काम करवाने के लिए इंतजार करना पड़ता है।

एक किसान रामलाल कहते हैं, "साहब, मैं पिछले एक हफ्ते से तहसील के चक्कर काट रहा हूँ। मेरी जमीन का नामांतरण करवाना है, लेकिन कर्मचारी हड़ताल पर हैं। अब मैं क्या करूँ?"

ये रामलाल की कहानी सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसे हजारों लोग हैं जो इस हड़ताल से प्रभावित हैं।

 

सिस्टम की बेरुखी: क्या सरकार सुनेगी? 📢

ये सवाल आज हर किसी के मन में है। क्या सरकार इन कर्मचारियों की मांगों पर ध्यान देगी? क्या वो सिस्टम की बेरुखी को तोड़ेगी? या फिर ये कर्मचारी अपनी लड़ाई में अकेले ही जूझते रहेंगे?

🎨 "सरकार को हमारी बात सुननी होगी," रवि कुमार कहते हैं, "हम कोई गैरकानूनी मांग नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ अपना हक मांग रहे हैं।"

 

अंत में: उम्मीद की किरण ✨

भले ही हालात मुश्किल हों, लेकिन इन कर्मचारियों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। उन्हें विश्वास है कि उनकी आवाज सुनी जाएगी, और उन्हें न्याय मिलेगा। ये लड़ाई आसान नहीं है, लेकिन ये लड़ाई लड़ने लायक है। क्योंकि ये सिर्फ उनके अधिकारों की लड़ाई नहीं है, ये उस सिस्टम के खिलाफ लड़ाई है जो शायद गरीबों और कमजोरों की आवाज सुनने को तैयार नहीं है।

अंत में, एक सवाल: क्या ये सिस्टम वाकई इतना बहरा है कि उसे इन कर्मचारियों की चीख सुनाई नहीं दे रही?

*जब तक हक नहीं मिलेगा, संघर्ष जारी रहेगा!*

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